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ये एकता देश के लिए खतरा है ?

आक्रोशित मन
आक्रोशित मन
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असम मैं हुई ताज़ा हिंसा की जड़ को जानने से पहले इसके व्यापक संदर्भ को समझने की जरुरत होगी , ऐसा क्या हो गया की हिंसा इतनी व्यापक हो गयी की एक ही रात मैं लाखो लोग  अपने घरो को छोड़ कर शरणार्थी हो गयी ?| जाहिर सी बात है की इतनी बढ़ी घटना एकाएक नहीं हो सकती इसकी तैयारियां कई दिनों पहले से शुरू हो चुकी थी |

muslim
दरअसल बंगला देश मैं घुसपैठियों का आना कोई नयी बात नहीं , ये सिलसिला लगभग पचास सालो से चला आ रहा है 1971 के बाद तो और ज्यदा हो गया है | बांग्लादेश आजाद होने के  समय भारत में शरण लेने वाले   बांग्लादेश शरणार्थियों में लगभग 70 % मुस्लिम ही थे जिनमें से शायद ही कोई वापस  गया होगा |

असम समेत अन्य पूर्वोतर राज्यों में बांग्लादेशी  घुसपैठ का एक खास पैट्रन बना हुआ है , इसी पैट्रन के तहत बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए सब तय  रहता है की यहाँ उन्हें कहाँ संपर्क करना है , कहाँ उन्हें बसाया जायेगा , कहाँ वोटर कार्ड और राशन कार्ड बनेगा आदि | बिलकुल  किसी आर्मी मूवमेंट की तरह चुस्त -दुरुस्त व्यवस्था |

कई बार तो ये घुसपैठिये अपना नाम बदल कर हिन्दू नाम रख लेते हैं , ताकि उनकी पहचान न हो पाए | संख्या ज्यादा होने पर छोटी मस्जिद बना ली जाती है , वो मस्जिद फिर उनके लिए एक जुटता का केंद्र बन जाती है फिर धीरे धीरे नए घुसपैठियों को शरण देने लग जाती है | नए घुसपैठियों को  बसाने आदि की व्यवस्था में लग जाती है|

इस  तरह से धार्मिक स्थानों   का और भारत में एक व्यक्ति एक वोट व्यवस्था का लाभ लेते हुए बांग्लादेशीमुस्लिम भारत की राजनैतिक एकता और अखंडता को तरस नरस कर रहे हैं |

कुल मिला के भारत मैं लगभग चार करोड़ बांग्लादेशी मुस्लिम भारत मैं रह रहे हैं और कुछ राजनीतक लोग अपने छद्दम वोट बैंक लाभ के लिए इन घुसपैठियों को असम, बिहार ,त्रिपुरा , पश्चिम बंगाल अदि राज्यों में प्रश्रय दिए हुए हैं |
घुसपैठियों के नाम वोटर कार्ड , राशन कार्ड , एंव पट्टा देके स्वार्थपरक राजनैतिक दल देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं | पिछले बीस सालों से असं में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत अत्याधिक बढ़ गया है , इसी प्रकार पश्चिम बंगाल और केरल के राज्यों में भी ये बढोतरी देखि जा सकती है |

धीरे धीरे असमऔर सीमावर्ती राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या इतनी बढ़ गयी की स्थानीय निवासिओं को पीछे हटना पड़ा , स्थानीय संसाधनों , रोजगारों , इत्यादि पर बांग्लादेशी मुस्लिमों का कब्ज़ा होने लगा पर स्थानीय लोग सब्र करते रहे जबकि भारत के निवासी होने के वावजूद भी इनकी  व्यथा सुनने वाला कोई नहीं था | असम की हिंसा का विस्फोट सरकार की उपेक्षा और ढीलेपन का ही नतीजा है ये हिंसा एक तरह से बोडो आदिवासिओं को अपने अस्तिव को बचाए रखने की लड़ाई है जिन पर बांगला देशी मुस्लिम हावी होते जा रहे हैं |

यदि आप गौर करेंगे तो पाएंगे की भारत  में इस्लामिक समुदाय देश भर में एक जुटता दिखा रहा है वो भी बिना ये समझे वहां पर क्या हुआ और कितना गलत और कितना सही था  ठीक वैसे ही जैसे यारुशेलम में अल -अक्शा मस्जिद कुछ हुआ तो भारत में बड़ोंदा में  दस हज़ार मुस्लिमों ने  जुलुस  निकला गया ? जिसके उत्तेजक नारों से दंगा भड़क गया | इसी तरह हज़रात बल की घटना से केरल और कर्नाटका के सुदूर इलाकों में जबरजस्त प्रदर्शन हुआ , हाल की म्यांबर की  घटना  के कारण लखनऊ , इलाहबाद आदि शहरोंमें जुलुस निकला गया और तोड़फोड़ की गयी |

किसी राज्य या राजनैतिक दल की तुलना में अगर किसी खास धर्म के लोग एक जुटता दिखा रहें हैं तो ये दुखद है , धर्म विशेष लोगो की ये एक जुटता लोक तंत्र , और  देश की एकता -अखंडता के लिए घातक है |

ये कतई नहीं भूलना चाहियें की भारत का विभाजन संप्रदाय के आधार पर ही हुआ था |

बम्बई में जो हिंसा हुई उसमें कोई उकसाव नहीं था वो केवल एकजुटता दिखने की कोशिश थी , ऐसे में अगर बंगलुरु और बाकि जगहों पर पूर्वोत्तर के लोगो को धमकियाँ मिल रहीं हैं तो ये केवल मात्र अफवाह नहीं है वास्तविकता हए है की वोट बैंक की राजनीती ने देश की एकता और अखंडता के खिलाफ काम किया है | इसे बेरोजगारी का परिणाम समझना भरी भूल होगी अगर जान बूझ कर इसे हलके से लिए गया तो देश को इसकी भरी कीमत चुकानी पड़ेगी |

असम समस्या का मुख्य कारण

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1 – करीब 82  लाख हेक्टेर वन और जनजातीय क्षेत्रों पर बांग्ला देशियों का कब्ज़ा
2 – छोटे मोटे काम जैसे रिक्शा , ठेला , मजदूरी , अंडे -पान की दुकान , पटरी बाज़ार जैसे कामों में इनका कब्ज़ा |
3 – नदी के किनारों पर सब्जी उगने के खेतों पर बांग्लादेशियों का  कब्ज़ा|
4 – गृह निर्माण , सड़क निर्माण , सर्वजनिक निर्माण  जैसे कार्यों पर इनके कब्जे |
5 – मोची , दरजी , बढई , मांस , जैसे लघु उद्योगों पर इनके कब्जे |
6 – हथियारों , जली नोटों , नशीले पदार्थो , पशुओं की तस्करी |

( इस लेख के कुछ अंश गोविन्दाचार्य जी के एक लेख से लिए गए हैं )

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