Menu
blogid : 12015 postid : 32

राम भक्तो का रावण के साथ अन्याय

आक्रोशित मन
आक्रोशित मन
  • 44 Posts
  • 62 Comments

दो  दिन बाद दशहरा  है , हर बार की तरह इस बार भी नौंदिन राम लीला का मंचन और दशवे दिन रावण दहन| सैकड़ो सालो से हर  साल ऐसे ही राम को अच्छाई का प्रतीक मान के और रावण को बुराई का प्रतीक मान के   रावण दहन करते आ रहे हैं | रावण को पापी , अत्याचारी , पराई स्त्री (सीता ) को हरण करने वाला , देवताओं को हराने वाला , हवन- यज्ञ को विध्वंस करने वाला , असुरी शक्तियों से लोगो को आतंकित करने वाला , सज्जनों- ऋषियों  को मारने वाला आदि कह कर उसका पुतला जलाते  हैं |
रावण को पर्याय दश सिरों वाला , बड़े -बड़े दांतों वाला , भयंकर आकृति वाला दिखाया  जाता है , शायद ऐसा इसलिए है क्यों की राम भक्त  चित्रकार -कहानीकार उसमें दुनियां की सारी बुराईयाँ दिखाना  चाहते  हैं , पर के रावण सच में ऐसा पापी या अत्याचारी था ?
आईये देखते हैं …..और रावण के असली चरित्र पर रौशनी डालते हैं जिसे राम भक्त कवियों या कहानीकारों ने अँधेरे में रखा और ऐसे वीर और सज्जन के चरित्र को स्याह रखा |
वाल्मीकि रामायण के अनुसार राक्षस जाती की तीन शाखाएं थी ,विराद,दानव और राक्षस | रावण तीसरी शाखा का नायक था | वाल्मीकि रामयण  उत्तर कांड ४-११ के अनुसार ब्रह्मा ने जलसर्ष्टि कर के उसकी रक्षा के लिए निमित्त प्राणियों की उत्पति की , जो क्षुधा पीड़ित थे वो बोल उठे ‘ रक्षाम:’  हम रक्षा करेंगे और जो क्षुधित नहीं थे वो बोल उठे ‘यक्षाम:’ हम यज्ञ करेंगे |
इस प्रकार  रक्षा करने वाले प्राणी राक्षस और यज्ञ करने वाले प्राणी यक्ष कहलायें | रावण उन्ही रक्षा करने वाले प्राणियों का नायक हुआ |
रावण का पिता ऋषि  विश्रवा एक  आर्य था और माता सुमाली असुर की पुत्री कैकसी थी , इस तरह से रावण में आर्य और अनार्य दोनों गुण मिश्रित थे | रावण का नाना सुमाली यक्षो से अपनी खोई लंका वापस लेना चाहता था इसलिए उसने अपनी पुत्री कैकसी को विश्रवा ऋषि के पास भेजा , विश्रवा से कैकसी के रावण , कुभ्करण , विभीषण , शूपर्णखा पैदा हुए |
विश्रवा ऋषि ने पहले ही रावण के बारे में भविष्य वाणी कर दी थी की रावण दस  विशाल सिर वाला , चमकीले बाल , बीस भुजाओं वाला और काले अंजन के सामान वर्ण होगा |
विश्रव की भविष्यवाणी और रावण के भयंकर रूप के कारण माता कैकसी जन्म से ही रावण से नफरत करने लगी जिस कारण रावण में प्रारंभ से ही हीन ग्रंथि पड़ गयी , जिस ने उसके महत्व कांक्षी होने में बहुत सहायता की |
रावण के दस सिर और बीस भुजाओं का वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी आया है पर एक-दो स्थानों पर ,वो भी शायद बाद में जोड़ा गया है |वास्तव में रावण की बड़ी थी जिस कारण वो “दसग्रीव” या एक ही सर पर दस सिरों का बल रखने वाला कहलाया |
दरअसल ‘दशानन ” का भाव है की उसने दसो दिशाओं को जीता या दस प्रकार मणियों को धारण किया |
यदि नाम के आधार पर ही उसे दस सिरों वाला या बीस भुजाओं वाला मान लें तो दशरथ को तो दस रथो वाला मानना चाहिए |
दरअसल दस सिर और बीस भुजाओं , बीस आंखे सूक्ष्म दृष्टी ,अद्वितीय वीरता ,अनगिनत विजय , बुद्धिमानता, पांडित्य का प्रतीक था | रावण एक सिर वाला और दो भुजाओं वाला मानव था , जैसा की वाल्मीकि रामायण के हनुमान द्वारा लंका रावण दर्शन , अशोक वाटिका और मंदोधारी विलाप से भी सिद्ध होता है|
देखें  सीता की खोज में लंका पहुचे हनुमान रावण को पलंग पर सोता हुआ देख क्या कहते हैं
तस्य ……….महामुखत,(वाल्मीकि रामायण सुन्दर कांड १०/२४)
(अर्थात हनुमान ने रावण को पलंग सोते हुए देखे जिसके एक सर और दो भुजाये थी )
हाँ , अनार्य होने के कारण उसका रंग अवश्य काला था |
कुबेर से लंका अपने अधिकार में लेने के बाद उसका यश वैभव दूर दूर तक फैल गया , रावण ने जल्दी ही अपनी  वीरता से अंगद्वीप (सुमात्रा ) ,यवद्वीप (जावा ) ,मलायाद्विप ( मलाया) ,शंख द्वीप ( बोर्नियों ), कुश द्वीप ( अफ्रीका ) , वराह द्वीप ( मेडागास्कर ) आदि दक्षिणी द्वीप समूहों  को जीत लिया | उसने देव , दानव , असुर , गन्धर्व , यक्ष आदि उस समय की लगभग सभी जातियों को जीत लिया , इस प्रकार रावण उस समय का सबसे बड़ा और शक्तिशाली राज्य की स्थापना की उससे पहले ऐसा कोई नहीं कर पाया था |
रावण  राजनैतिक और सांस्क्रतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली सम्राट था उसने आदित्य और यक्ष जाती को मिला के राक्षस संस्कृति की स्थापन की | राक्षस संस्कृति का मूल मन्त्र था -अखिल विश्व को एक धर्म और एक संस्कृति में दीक्षित करना , इस प्रकार ये रावण ही था जिसने स्वप्रथम अखिल विश्व में एकता का उद्घोष किया | इस उद्देश्य से सर्व प्रथम  उसने ही वेदका संपादन , वैदिक रचनाओं पर नविन टिप्पणियां , मूल मन्त्रों की  व्याख्या की | रावण द्वारा प्रतिपादित यह नवीनभाष्य ही आज ” कृष्ण यजुर्वेद ” के नाम से पुकारा जाता है |
रावण के राज्य में पूरे लंका में यज्ञ होते थे  और वेद मन्त्र गए जाते थे |
हनुमान ने लंका पहुच कर देखा वो वाल्मीकि रामायण सुन्दर कांड १८/२  में इस प्रकार है –
षडंगवेदविदुषां………………….ब्रह्मरक्षसाम,
( अर्थात – प्रातः काल का समय था , हनुमान सीता की खोज में व्यस्त थे उन्होंने हर राक्षस के घर से वेद मन्त्रों की ध्वनी सुनी )
राम भक्त कहते हैं की रावण ऋषियों के यज्ञ को नष्ट करता था जबकि वो स्वयं ये बहुत बड़ा याज्ञिक था और उस ने कोई भी शुभ  कार्य बिना यज्ञ के नहीं किया यहाँ तक उसकी प्रजा भी यज्ञ करती थी , तो भला वो ऋषियों के यज्ञ को क्यूँ नष्ट करता ? वो ऋषियों के यज्ञ के तरीके का विरोधी था क्यों की उस समय ऋषियों द्वारा यज्ञ में पशु बलि दी जाती थी जिसका रावण विरोध करता था ऐसा ही एक प्रसंग सीता द्वारा तब आया है जब वो गंगा पार करती हुई ये बोलती हैं की यदि वो सुरक्षित गंगा पार कर लेती हैं तो पशुबलि देंगी |
रामकथा रचियताओं ने रावण को परस्त्रीगामी कहा है , पर ये आरोप भी गलत हैं | रावण ने सभी स्त्रिओं को  विवाह करके ही हासिल किया था  विलासिका , मंदोदरी , कुमुद्वती , सुभद्रा , प्रभावती आदि रानियों ने रावण को स्वयं वारा था अथवा उनके पिताओं ने स्वयं रावण को प्रदान किया था |

एक तरफ हम बालि को धोखे से मारने वाले , सीता द्वारा अग्नि परीक्षा में सफल होने के बाद भी निष्कासन  करने वाले , शम्बूक वध करने वाले , विभीषण के सहारे रावण वध करने वाले , जीवन भर साथ निभाने वाले लक्ष्मण जैसे भाई को अंत समय में राज्य से निकाल देने वाले राम को भगवान का अवतार मान लेते हैं और जीवन भर सदाचार और वीरता से जीने वाले पराक्रमी रावण को बुराई का पुतला |

शेष अगले लेख में …

Read Comments

    Post a comment