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अज़ान क्यों ?

आक्रोशित मन
आक्रोशित मन
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अज़ान इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है , हर मुस्लिम के लिए नमाज़ पढना जरुरी है।  आईये नमाज़ का सच जानने की कोशिश करते हैं ।

जब  मुहम्मद साहब  मक्का से मदीना आए, तो एक रोज़ इकठ्ठा हो कर सलाह मशविरा किया कि नमाज़ियों को नमाज़ का वक्त बताने के लिए कि क्या तरीका अपनाया जाए , इस पर सभी ने अपनी-अपनी राय पेश कीं। किसी ने राय दी कि.. यहूदियों की तर्ज़ पर सींग बजाई जाए, किसी ने हिन्दू की तर्ज़ पर नाक़ूश (शंख) फूकने की
राय दी , तो किसी ने कुछ किसी ने कुछ।
मुहम्मद सब की राय को सुनते रहे मगर उनको उमर की ये राय पसंद आई कि अज़ान के बोल बनाए जाएँ, जिस को बाआवाज़ बुलंद पुकारा जाए( बुखारी जिल्द 1 हदीद 578)
इस पर मुहम्मद ने बिलाल को हुक्म दिया, उठो बिलाल अज़ान दो.” (बुखारी 9:91:353)
इस तरह अज़ान चन्द लोगों के बीच किया गया एक फैसला था।

हाँ, उमर की अज़ान होने के बाद शियाओं ने इस में कुछ रद्दो बदल कर दिया मगर इसे और भी दकयानूसी बना दिया। आज अज़ान मुसलमानों में इस तरह पैठ बना चूका है कि बच्चे के पैदा होते ही इस अजान को उसके कानों में फूँक दिया जाता है।

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि अज़ान की आवाज़ें सिर्फ मुस्लिम ही नहीं सारी दुनिया सुनती है और, उस से भी बड़ी बात यह कि .दुनिया में लाखों मस्जिदें होंगी, उन पर लाखों मुअज़्ज़िन (अजान देने वाले) होंगे दिन में पॉँच बार कम से कम ये बावाज़ बुलंद दोहराई जाती है।

जब आपको इस नमाज़ के बोल और उसके मतलब मालूम होंगे तो आप आश्चर्य करेंगे और शायद वो मुस्लिम भाई भी जो केवल अज़ान   सुन कर मस्जिद की तरफ दौड़े जाते हैं ।

1- अल्लाह हू अकबर अल्लाह हु अकबर
(अल्लाह बहुत बड़ा है)……… बोल नंबर 1

रिमार्क : बहुत बड़ी चीजें तभी होती हैं जब कोई दूसरी चीज़ उसके मुकाबले में छोटी हो यदि कुरान का यह एलान है कि अल्लाह सिर्फ़ एक है तो उसका ये अज़ानी ऐलान बेमानी है कि अल्ला बहुत बड़ा है )

2-अशहदोअन ला इलाहा इल्लिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ कि… अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.)…. बोल नंबर 2

रिमार्क : लायके इबादत भी कुछ समझ नहीं आने वाली बात है क्योंकि, कोई इज्जत के काबिल तो हो सकता है ।लेकिन कोई कुदरत अपनी इबादत की न ज़रुरत रखती है न ही उसकी ऐसी समझ-बूझ होती है, फिर किसी कि भी इबादत करना इन्सान के हक में है फिर चाहे  वो मूर्ति ही क्यों न हो सिर्फ अल्लाह ही की क्यों ?)

3- 1-अश हदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ कि.. मुहम्मद अल्लाह के रसूल{दूत} हैं)…… बोल नंबर 3

रिमार्क : अब  कोई बताए कि गवाही का मतलब क्या होता है ?कोई अदना मुसलमान से लेकर आलिम, फ़ज़िल, दानिशवर या कोई भी मुस्लिम बुद्धिजीवी बतलाएं कि.. एक साधारण मस्जिद का मुलाज़िम आखिर किस सबूत के आधार पर अल्लाह और मुहम्मद साहब का चश्मदीद गवाह बना हुआ है?
क्या उसने सदियों पहले अल्लाह को देखा था? अथवा क्या उसे मुहम्मद जी  के साथ देखा था ?और, सिर्फ देखा ही नहीं, बल्कि अल्लाह को इस अमल के साथ देखा था कि वह मुहम्मद जी  को रसूल बना रहा है?क्या अल्लाह की भाषा उस के समझ में आई थी?
क्या, हर अज़ान देने वाले की उम्र 1500 साल के आस पास की है, जब मुहम्मद को ये नबूवत मिली थी।यहाँ याद रखें गवाही का मतलब शहादत होता है सबूत होता है अकीदत,आस्था, अथवा, यकीन नहीं ।

कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता या, गवाही के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता ।

4-हैइया लस सला, हैइया लस सला ..
(आओ नमाज़ की तरफ़ आओ नमाज़ की तरफ़)…… बोल नंबर 4

रिमार्क : नमाजों में यही कुरानी इबारतें आंख मूँद कर पढ़ी जाती हैं जो की हकीक़त में  आप गलत हर्फे पढ़ रहे हैं ।
5- हैइया लल फला, हैइया लल फला

(आओ भलाई की तरफ , आओ भलाई की तरफ) ……..बोल नंबर 5

रिमार्क : सिर्फ नमाज़ पढना किसी भी हालत में भलाई का काम नहीं कहा जा सकता है ,इन्सान और इंसानियत का फर्ज निभाना भलाई का काम है ।

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