Menu
blogid : 12015 postid : 723038

पौराणिक प्रलय- मिथक या इतिहास ?

आक्रोशित मन
आक्रोशित मन
  • 44 Posts
  • 62 Comments

दुनिया के सभी प्रमुख धर्म ग्रंथो में ऐसी मान्यता है की में प्राचीन काल में ‘ प्रलय’ आई थी। इसी प्रलय को हिन्दू धर्म ग्रंथो में ऐसा वर्णन है की मनु ने एक बेडा बनाया और उसमे दुनिया के सभी जीव जंतुओं को एकत्रित किया और उन्हें प्रलय के प्रकोप से बचाया , बाद में इन्ही बचे हुए प्राणियों से आगे वंश चले। इसी प्रलय की कथा बाइबिल और क़ुरान में आई है जब ‘नूह’ बेडा बनाते हैं और  वो भी प्राणियों को  प्रलय के प्रकोप से बचाते हैं। अवेस्ता में भी इसी घटना का होना दर्ज है।

तो,  विभिन्न प्राचीन पुस्तको में एक ही घटना का दर्ज होना आश्चर्यचकित करता है, ऐसे में यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है की प्रलय की घटना क्या केवल एक कपोल कल्पना भर है जो सभी प्राचीन पुस्तको के दर्ज है या इसके पीछे कोई सच्चाई? क्या तथा कथित ‘ प्रलय’ वैसी ही थी जैसा की प्राचीन ग्रंथो में  वर्णित है अथवा इस घटना को बढ़ा चढ़ा के वर्णन किया गया है?।जिसे दैवीय कह कर और मनु/ नुह को ईश्वर भक्त कह कर इस इतिहासिक घटना को धर्म या मजहब का चश्मा पहना दिया गया है?

इस ऐतिहासिक प्रलय की घटना को आचार्य चतुरसेन ने भी अपनी पुस्तक में  बड़े ही प्रमाणिक तौर पर वर्णित किया है जो धार्मिक पुस्तको की कपोल कल्पनाओं के विपरीत सत्यता के बहुत निकट प्रतीत होता है। उन्ही के प्रमाणों को लेके हम लेख को आगे बढ़ाते है और जांचते है की वास्तविकता कितने सत्य के निकट है।

विश्व प्रशिद्ध यह घटना लगभग 3200-3300 ई. पू. आज के मेसोपोटामिया और पर्शिया के उत्तर पश्चिम प्रदेश में हुई थी।

पर्शिया के पश्चिमोत्तर में अर्मिनिया प्रदेश है , वंहा के बर्फीले पर्वतों से निकल कर फरात नदी मेसोपोटामिया में आई है। यह नदी मेसोपोटामिया की ख़ास नदी है, यह नदी बहुत विशाल और विस्तार वाली है। मेसोपोटामिया एक और प्रमुख नदी है शतुल, यह ऐसी नदी है जिसमें समुन्द्र के जहाज भी आ जा सकते थे। कहा जाता है की प्राचीन बसरा शहर जो की 6 वीं ईसा में बसाया गया था उसमे एक लाख बीस हजार नहरे थी जिनमे नावे चला करती थी।इससे यह समझ सकते हैं की ये नदियाँ कितनी विशाल और गहरी रही होंगी। संभवत: बर्फ के बाँध टूटने के कारण इसी दजला नाम की नदी में भयंकर बाढ़ आई और उन सभी प्रदेशो को जो फारस की खाड़ी और कश्यप सागर( आज का केस्पियन ) के बीच थे समूचे प्रदेशो को डुबो दिया।

परन्तु इन प्रदेशो में कुछ ऐसे स्थल भी थे जो काफी ऊँचे थे समुन्द्र से लगभग 17-18 हज़ार फिट जंहा संभवत: जल नहीं पहुच पाया था पर जो मैदानी और नीचले भूभाग थे वो  पूरी तरह से नष्ट हो गये थे। जीव जंतु, मानव बस्तिया,बनस्पति आदि सभी पूरी तरह से नष्ट हो गयी।

इनमे नष्ट होने वाली मुख्यत: अरार्ट जाती थी जो मैदानी इलाके में बसती थी, यह जाती महाराज अत्यरती जनन्त्पति की वंसज थी, महाराज अत्यराती के विषय में हम नीचे विस्तार से जानेंगे । इस प्रलय से सारा ईरान जलमग्न हो गया और वो मृत्यु लोक कहाया जाने लगा ,इस मृत्यु लोक का वर्णन पुराणों में भी है।

इस प्रलय का कारण था वंहा के किसी ज्वालामुखी का विस्फोट का होना। इसी ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बर्फ की चट्टानें टूट गयी और पिघल कर दजला नदी में  गिरी जिससे प्रलयंकारी बाढ़ और कश्यप सागर में उफान ने ईरान को जलमग्न कर दिया।

कश्यप सागर प्रदेश में एक स्थान है बाकू जंहा आज भी प्रथ्वी से अग्नि निकलती है। इस स्थान को देखने सिकंदर भी गया था, यह प्रथ्वी से निकलने वाली अग्नि संभवत:उसी ज्वालामुखी विस्फोट के अवशेष है।

मत्स्यपुराण में इस प्रलयकारी घटना के वर्णन में कहा गया है की  “मनु” को एक मत्स्य (मछली) मिली जिसने उन्हें बचाया। अब यह “मत्स्य” कौन थी इसको भी जान लीजिये , दरअसल यह मत्स्य कोई मछली नहीं थी बल्कि यह मानव ही थे जिनको “मत्स्य” कहा जाता था और यह बहुत अच्छे नाविक थे । बेबिलोनिया दंतकथाओ में इस जाती का जिक्र आता है,बेबिलोनिया में इन्ही मत्स्य जाती के लोगो का प्राचीन काल से राज था, प्रलय के समय इन्ही नाविक जातियों के राजा ने मनु की सहायता की और उसके परिवार और मवेशियो की रक्षा की।

इसके बाद में मनु ने सुषा नगरी बसाई और अपनी राजधानी बनाई जिसकी वैभवता का वर्णन पुराणों और प्राचीन इरानियन प्राचीन पुस्तको में दिया है,बाद में यह नगरी भी उजाड़ गई ।

प्रलय में जो अर्राट जाती नष्ट हुई थी वो महाराज अत्यराती जनान्न्पति के वंसज थी, महाराज अत्यराती चाक्षुस मनु के सबसे बड़े पुत्र थे । सरिया में एक नगर अत्यरत(Adbrot)  भी इन्ही के नाम पर है और एक पर्बत का नाम भी अर्राट है जो  इन्ही अत्यराती के वन्सजो के नाम पर है।

चाक्षुस मनु के पांच पुत्र थे , सबसे बड़े अत्यराती, दुसरे अभिमन्यु (मनु),तीसरे थे उर, चौथे थे पुर और पांचवे थे तपोरत।

अत्यराती चक्रवर्ती सम्राट थे उनके अधीन कई प्रदेश थे जिनमे बैकुंठ धाम जैसे प्रसिद्ध नगर भी थे जो एल्ब्रुज पर्वत पर अभी तक ‘ इरानियन पैराडाइज’ के नाम से आज भी प्रसिद्ध है।

दुसरे  भाई थे अभिमन्यु या मन्यु या मनु ( या नुह) प्राचीन अर्जनेम में मनु (APhumon) ट्राय युद्ध के विजेता यही है । इन्होने ही प्रलय के समय बेडा बना के अपने परिवार वालो ओर अपने मवेशिओ की रक्षा की जिसका वर्णन मैंने ऊपर किया है।  प्राचीन काव्य ‘ओडेसी’  में इन्ही की गाथा है

तीसरे भाई उर ने अफ्रीका, सरिया, बेबिलोनिया, आदि देशो को जीता। इन्ही के वंशजो ने लगभग 2000 ईसा पूर्व अब्राहम को जीता था जिसका उल्लेख ईसाईयों के ओल्ड टेस्टोमोनी ( बाइबिल ) में भी है । आज भी उर बेबिलोनिया का एक प्रदेश है, प्रसिद्ध अप्सरा उर्वशी इस उर प्रदेश की थी, ईरान के एक पर्वत का नाम उरल है, अफ्रीका का प्रदेश रायो-डी- ओरा है जो  उर के  नाम पर रखा गया है।


उर के पुत्र अंगीरा थे जिन्होंने अफ्रीका जीता लिया  था और पिक्युना के निर्माणकर्ता थे, माना जाता है की यही अंगीरा ने अधर्ववेद का भी निर्माण करवाया था।

चौथे भाई पुर के नाम से ईरान के निकट एलबुर्ज के निकट पुरसिया नगर है, जो इनकी राजधानी थी,इन्ही के नाम से ईरान का नाम पर्शिया पड़ा।

पांचवे भाई तपोरत ने भी ‘तपोरत’ नाम से अपना राज्य स्थापित किया , इनका प्रदेश ‘तपोरिया,

‘ कहलाया।तपोरत के राजा आगे चल के देवराज कहलाये इंद्र इन्ही वंशधर थे।आज कल तपोरत प्रदेश को मंजादीन कहा जाता है।

आज के वैज्ञानिक उस सभ्यता को प्रोटो इलामईट (ताम्र सभ्यता) सभ्यता कहते है ,इसके अवशेष मैसोपोटामिया और उसके आस पास प्रदेशो में मिलते हैं। इस ताम्र सभ्यता के अवशेष कांस्य सभ्यता के अवशेषों के 6-7 फुट गहरे में मिलते हैं । इनके बीच 6-7 फुट चिकनी मिटटी की मोटी परत प्राप्त हुयी है , यह चिकनी मिटटी की मोटी परत वही मिटटी  की परत है जो प्रलय यानि बाढ़ के साथ आई थी।

क्रमश:

Read Comments

    Post a comment